आज ज़िंदगी के कुछ फटे पुराने कपड़े सी लें
...चल आज फिर जी लें!
एक कोने में दुबका सा है,
तन्हाई ओढे, सहमा सा है;
चल इस डर को आज उठा कर,
गले लगा कर, आँखों में आंखें डाल कर;
साहस की धूप सेक लें.
...चल आज फिर जी लें!
आज ज़िंदगी के कुछ फटे पुराने कपड़े सी लें,
...चल आज फिर जी लें!
दुःख के डब्बे बटोर बटोर,
अब दिल अलमारी भर गई;
चल आज खुशी की नीम से,
दुःख के कीड़े को तोड़ दे;
इस साफ दिल से, आज फिर दुनिया देख लें.
...चल आज फिर जी लें!
आज ज़िंदगी के कुछ फटे पुराने कपड़े सी लें,
...चल आज फिर जी लें!
कितना पाया, कितना खोया,
कुछ हंसा, बहुत सा रोया;
जीवन की खिड़की पे बैठ बैठ,
हुई देर बहुत 'ओ' मोया;
चल नज़र उठा, अब आगे बढ़, अपने अस्तित्व को,
विस्तृत आकाश में गूँथ लें.
...चल आज फिर जी लें!
आज ज़िंदगी के कुछ फटे पुराने कपड़े सी लें,
...चल आज फिर जी लें!
लेखक : जीवस्
2 comments:
Path-finder! You are.
With thanks,
RK
thanks RK..
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